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राजस्थान पंचायती राज नियमावली 1996 (अध्याय 3 कार्यभार का अंतरण और स्थानों की रिक्ति) | Rajasthan PanchayatI Raj niyam 1996 (Adhyaay 3 Karyabhar ka Antaran aur Sthanon ki Rikti)

Rajasthan PanchayatI Raj niyam 1996 (Adhyaay 3 Karyabhar ka Antaran aur Sthanon ki Rikti)

Deeply study the Rajasthan Panchayati Raj Niyam 1996, Adhyay 3, which covers the devolution of duties and distribution of roles within the local governance structure.

राजस्थान पंचायती राज नियम 1996

 अध्याय 3 
कार्यभार का अंतरण और स्थानों की रिक्ति 

19. कार्यभार का अंतरण - (1) जब अधिनियम की धारा 25 (1) के अधीन कार्यभार सौंपा जाना अपेक्षित हो तब ऐसा सदस्य, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, वस्तुतः अपने भौतिक कब्जे के अधीन रजिस्टरों और वस्तुओं की सूची तैयार करवायेगा और उन्हें धारा 25 (1) में उल्लिखित व्यक्ति को सौंप देगा। पंचायत के मामले में सरपंच पंचायत की बैठकों की कार्यवृत्त पुस्तक अपने उत्तरवर्ती को सौंप देगा और यह भी सत्यापित करेगा कि रोकड बही, पास-बुक, चैक बुक, नगद अतिशेष, पट्टा रजिस्टर, ग्राम सभा बैठक रजिस्टर पंचायत कार्यालय में उपलब्ध है। यद्यपि समस्त ऐसे अभिलेख धारा 78 (2) के अनुसार सचिव की अभिरक्षा में रहते हैं किन्तु सरपंच भी ऐसे अभिलेख की सुरक्षित अभिरक्षा के लिए उत्तरदायी है। 

(2) कार्यभार सौंपने वाले और लेने वाले दोनों ही व्यक्ति कार्यभार के अंतरण के प्रमाणस्वरूप ऐसी सूची के नीचे अपने-अपने हस्ताक्षर करेंगे और तारीख लगायेंगे। 

(3) कार्यभार सूची चार प्रतियों में तैयार की जायेगी। एक प्रति पंचायत समिति को भेजी जायेगी, एक कार्यालय प्रति के रूप में प्रतिधारित की जानी है और दो सौंपने वाले और लेने वाले व्यक्तियों को दी जायेगी। 

20. कार्यभार सौंपने में विफल होने की दशा में मुख्य कार्यपालक अधिकारी की सहायता का लिया जाना - धारा 25 (1) के अधीन किसी भी व्यक्ति के कार्यभार सौंपने में विफल होने पर अधिनियम की धारा 88(2) के अधीन कार्यवाही करने के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी को लिखित निवेदन किया जा सकेगा और मुख्य कार्यपालक अधिकारी नव निर्वाचित व्यक्ति को कार्यभार दिलवायेगा। 

21. अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस - (1) धारा 37 के अधीन किसी पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष में विश्वास का अभाव अभिव्यक्त करने वाला प्रस्ताव करने के आशय का लिखित नोटिस प्रपत्र 1 में होगा और *सक्षम प्राधिकारी को परिदत्त किया जायेगा। 

*[राजस्थान  पंचायती राज (पंचम संशोधन) नियम 2017  (जी. एस. आर. 98 ) संख्या एफ 4 (7) संशोधन /नियम / लीगल / पीआर/ 2017  /1457  दिनांक 22.11.2017 द्वारा प्रति स्थापित, राज राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 23.11 .2017  को प्रकाशित एवं प्रभावी]

(2) बैठक और उसके लिए नियत तारीख और समय का नोटिस सक्षम प्राधिकारी द्वारा बैठक की तारीख से कम से कम 15 पूर्ण दिन पूर्व डाक में डाले जाने के प्रमाण-पत्र के अधीन डाक से, प्रत्यक्षतः निर्वाचित प्रत्येक पंच/सदस्य को उसके सामान्य निवास स्थान पर प्रपत्र 2 में भेजा जायेगा। ऐसे नोटिस की प्रति ऐसी पंचायती राज संस्था के सूचना-पट्ट पर भी लगायी जायेगी: 

परन्तु ऐसे किसी स्थान की दशा में जहां कोई डाकघर नहीं हो या जहां नोटिस की तामील शीघ्रता से नहीं की जा सकती हो ऐसा नोटिस संबंधित तहसीलदार के माध्यम से तामील किया जायेगा। 

22. जाँच की प्रक्रिया - (1) धारा 38 की उप-धारा (1) के अधीन कोई भी कार्यवाही करने के पूर्व राज्य सरकार स्वप्रेरणा से या किसी भी शिकायत पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी से प्रारम्भिक जाँंच करवा सकेगी और उससे राज्य सरकार को एक मास के भीतर-भीतर रिपोर्ट भेजने की अपेक्षा कर सकेगी। 

(2) यदि, पूर्वोक्तानुसार प्राप्त रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात या अन्यथा राज्य सरकार की यह राय हो कि धारा 38 की उप-धारा (1) के अधीन कार्यवाही आवश्यक है तो राज्य सरकार निश्चित  आरोप विरचित करेगी और उनकी संसूचना ऐसे ब्यौरों के साथ जो आवश्यक समझे जायें, पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य को लिखित में देगी। उससे एक मास के भीतर-भीतर अभिकथनों को स्वीकार करते हुए प्रतिवाद, यदि कोई हो, करके इन्कार करते हुए एक लिखित कथन प्रस्तुत करने की और यदि वह चाहे तो व्यक्तिशः सुने जाने की अपेक्षा की जायेगी। 

(3) राज्य सरकार विहित कालावधि की समाप्ति और ऐसे लिखित कथन पर विचार करने के पश्चात अधिकारी नियुक्त कर सकेगी और राज्य सरकार की ओर से जाँच अधिकारी के समक्ष मामला प्रस्तुत करने के लिए किसी व्यक्ति को नामनिर्दिष्ट भी कर सकेगी। 

(4) जाँच अधिकारी ऐसे दस्तावेजी साक्ष्य पर विचार करेगा और ऐसा मौखिक साक्ष्य लेगा जो आरोपों के संबंध में सुसंगत या तात्विक हो। साक्षियों की प्रतिपरीक्षा (जिरह) का अवसर विरोधी पक्ष को दिया जायेगा। 

(5) जाँच अधिकारी जाँंच की समाप्ति पर साबित या असाबित या अंशतः साबित के रूप में प्रत्येक आरोप पर कारणों सहित अपने निष्कर्ष अभिलिखित करते हुए रिपोर्ट तैयार करेगा और उसे अंतिम विनिश्चय  के लिए राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगा। 

(6) राजस्थान अनुशासनिक कार्यवाही (साक्षियों को समन किया जानाए  दस्तावेजों का पेश किया जाना) अधिनियम, 1959 (1959 का अधिनियम, सं. 28) के उपबंध और तद्धीन बनाये गये नियम इन नियमों के अधीन पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या, यथास्थिति, सदस्य के विरूद्ध की जाने वाली जाँच पर यथावश्यक  परिवर्तनों सहित लागू होंगे। 

(7) राज्य सरकार जाँच अधिकारी के निष्कर्षो पर विचार करेगी और उसे सुने जाने का अवसर देने के पश्चात ऐसे  अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य को या तो माफ कर सकेगी या पद से हटा सकेगी या समुचित आदेश पारित कर सकेगी। हटाये जाने की दशा में, वह राजपत्र में भी प्रकाशित किया जायेगा: परन्तु यदि ऐसी पंचायती राज संस्था के निर्वाचन की अवधि पहले ही समाप्त हो गयी हो तो उनके विरुद्ध निष्कर्ष अभिलिखित किये जायेंगे। 


23. निरर्हता की दशा में हटाये जाने के लिए प्रक्रिया - (1) जब कभी पंच/सरपंच के मामले में मुख्य कार्यपालक अधिकारी को और प्रधान/उप-प्रधान, प्रमुख/ उप प्रमुख या किसी पंचायती राज संस्था के सदस्य के मामले में, जिसे इस रूप में सम्यक् रूप में निर्वाचित घोषित किया गया है या जिसे अधिनियम के किसी भी उपबंध के अधीन इस रूप में नियुक्त किया गया है, राज्य सरकार को यह अभ्यावेदन किया जाये या अन्यथा उसके नोटिस में यह लाया जाये कि वह उस समय जब वह इस प्रकार निर्वाचित या नियुक्त किया गया था, ऐसे निर्वाचन या नियुक्ति के लिए अर्हित नहीं था या निरर्हित था या तत्पश्चात ऐसे सदस्य के रूप में बने रहने के लिए निरर्हित हो गया है तब सक्षम प्राधिकारी उसे किये गये अभ्यावेदन या अन्यथा उसके नोटिस में लाये गये विषय की भागरूप अभिकथित निरर्हता या निरर्हताओं को स्पष्टतः और लेखबद्ध करेगा और ऐसे सदस्य को तत्काल नोटिस जारी करेगा और - 

(I) उसके विरुद्ध अभिकथनों का सार तैयार करेगा, 

(II) नोटिस के जारी होने की तारीख के कम से कम पन्द्रह दिन पश्चात की कोई तारीख नियत करेगा जिसकी जाँच की जायेगी, 

(III) उससे स्वीय उपस्थिति के द्वारा या लिखित में यह कारण (हेतुक) दर्शित  करने की अपेक्षा करेगा कि उसके अर्हित नहीं होने या निरर्हित होने के अभिकथित आधार पर उसका स्थान राज्य सरकार द्वारा रिक्त या रिक्त हुआ घोषित क्यों नहीं किया जाना चाहिए, 

(IV) उससे अभिकथन का प्रत्याख्यान करने में ऐसा दस्तावेजी या अन्य साक्ष्य जो उसके कब्जे में हो, पेश करने की अपेक्षा करेगा, और 

(V) यदि वह ऐसी वांछा करे तो उसे नोटिस द्वारा नियत तारीख को वैयक्तिक रूप से उपस्थित होने के लिए कहेगा और नोटिस की प्रति इत्तिला देने वाले, यदि कोई हो, को भी भेजी जायेगी। 

(2) नोटिस द्वारा नियत तारीख को मुख्य कार्यपालक अधिकारी या, यथास्थिति, राज्य सरकार, इत्तिला देने वाले, यदि कोई हो, के साथ-साथ अपचारी सदस्य, यदि वह उसके समक्ष उपसंजात हो और वैयक्तिक सुनवाई के लिए निवेदन करे, को सुनेगी, अभिकथन या अभिकथनों को साबित या नासाबित करने में उनके द्वारा पेश किये गये दस्तावेज और अन्य साक्ष्य पर विचार करेगी, ऐसी और जाँंच करेगी जो वह आवश्यक समझे, अभिकथित निरर्हता या निरर्हताओं के बारे में निष्कर्ष अभिलिखित करेगी और या तो कार्यवाहियों को समाप्त करने का आदेश करेगी या ऐसे सदस्य के स्थान को रिक्त हुआ घोषित करेगी या ऐसा अन्य आदेश करेगी जो अधिनियम की धारा 39 के अधीन मामले की परिस्थितियों में उचित हो। 

24. बैठकों से अनुपस्थित रहने के कारण रिक्ति - (1) यदि कोई सदस्य पंचायती राज संस्था की तीन क्रमवर्ती बैठकों से अनुपस्थित रहा है तो मामला पंचायती राज संस्था के समक्ष रखा जायेगा और ऐसी पंचायती राज संस्था, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि वह सदस्य लिखित में सूचना दिये बिना तीन क्रमवर्ती बैठको से अनुपस्थित रहता है, इस आशय का कोई संकल्प पारित करेगी कि अनुपस्थित सदस्य तीन क्रमवर्ती बैठकों में अनुपस्थित रहा है और बैठक के अभिलेख और ऐसे किन्हीं भी अन्य कागजों, जो सुसंगत हो, के साथ संकल्प की एक प्रति पंच/सरपंच के मामले में मुख्य कार्यपालक अधिकारी को और अन्यों के मामले में राज्य सरकार को अपनी सिफारिश सहित अग्रेषित करेगी। 

(2) खण्ड (1) में निर्दिष्ट अभिलेख की प्राप्ति पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी या, यथास्थिति, राज्य सरकार अभिलेख का परिशीलन करने और पंचायती राज संस्था की सिफारिश पर विचार करने पर तथा ऐसी और जाँंच करने के पश्चात जो वह आवश्यक समझे और अनुपस्थित सदस्य को सुने जाने का अवसर देने के पश्चात  ऐसे स्थान को रिक्त हुआ घोषित कर सकेगी। 

(3) अंतिम आदेशों  की प्रतियां संबंधित जिला परिषद् और पंचायती राज संस्था को भेजी जायेंगी। 

(4) राज्य सरकार मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा पारित किसी आदेश की सत्यता, वैधता और औचित्य के बारे में स्वयं का समाधन करने के प्रयोजन के लिए संबंधित अभिलेख की परीक्षा कर सकेगी और ऐसे आदेश को पुष्ट, फेरफारित या विखण्डित कर सकेगी। 

25. शपथ न लेने के कारण स्थान की रिक्ति - (1) यदि किसी पंचायती राज संस्था के किसी सदस्य के बारे में पंच सरपंच के मामले में मुख्य कार्यपालक अधिकारी और अन्य मामलों में राज्य सरकार यह पाये कि ऐसे सदस्य ने धारा 23 के अधीन अधिसूचना की तारीख से तीन मास के भीतर-भीतर विहित शपथ नहीं ली या प्रतिज्ञान नहीं किया है तो वह राजस्थान पंचायती राज (निर्वाचन) नियम, 1994 के नियम 76 के उप-नियम (2) में उल्लेखित संबंधित अधिकारियों से मामले की आवश्यक सूचना इस प्रकार मंगायेगा कि उसकी अध्यापेक्षा की तारीख के एक पखवाडे के भीतर-भीतर वह उसके पास पहुँच जाये। 

(2) यदि ऐसी सूचना से यह पाया जाये कि ऐसे सदस्य ने उस समय तक अपेक्षित शपथ नहीं ली है या प्रतिज्ञान नहीं किया है तो पंच सरपंच के मामले में मुख्य कार्यपालक अधिकारी और प्रधान/उप प्रधान, प्रमुख/उप प्रमुख या सदस्य के मामले में राज्य सरकार ऐसी और जाँंच के पश्चात, जो वह आवश्यक समझे और संबंधित सदस्य को सुने जाने का अवसर देने के पश्चात ऐसे स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगी या ऐसा अन्य आदेश कर सकेगी, जो वह मामले की परिस्थितियों में उचित समझे। 

26. स्थानों या पदों की रिक्ति का प्रकाशित किया जाना - अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य, जिसका स्थान अधिनियम की धारा 39 या 41 के अधीन रिक्त हो गया है, का नाम और पदाभिधान मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा अपनी ओर से या, यथास्थिति, राज्य सरकार की ओर से संबंधित पंचायती राज संस्था के सूचना-पट्ट पर प्रकाशित किया जायेगा। उसकी रिपोर्ट राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयेाग को भी की जायेगी। 

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